चलो ऐ दिल अबकी बार
जरा खुद को हसाया जाए।
थोड़ी देर के लिए ही सही
उस महज़बीं को भुलाया जाए।
वस्ल-ऐ-शब में उसकी
आंखों की जो स्याह जादूगरी है।
गहरी कजरारी आँखों की उस
जादूगरी को मिटाया जाए।
रश्क़ नही मुझको उनकी
मासूम अदाओ से मगर।
इस तख़य्यूल को अब
करीब ना आने दिया जाए।
मरासिम जो तेरे और मेरे
दरमियां कभी रहा भी था।
उस हर एक याद से अब
खुद को दूर किया जाए।
No comments:
Post a Comment