वो जो झुल्फों में आज गजरा लगा के निकले।
उन्स-ए-रिवायत पर क़यामत ढ़ा के निकले।
हम खड़े थे दीदार-ऐ-आरज़ू लिए उनकी गली में।
वो जब करीब से निकले, तीर-ए-निगाह चला के निकले।
मशहूर हैं उनके चर्चे गैर की महफिलों में भी।
कातिल वो हर एक तसव्वुर-ए-हयात के निकले।
हुस्न उनका, अदाएं उनकी, उनकी हर एक बात ख़्वाब सी ।
रुखसार ऐसा की बाद-ए-सबा को भी महका के निकले।
मुसलसल उनका नूर मोजज़ा-ए-हवा ने बिखेरा है।
तबस्सुम में जब वो अपने कातिलाना अंदाज़ ले के निकले।
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