वो ख़्वाबों में रहती है पर कभी सामने नही आती।
महबूबा मेरी उलझी उलझी पहली है समझ ही नही आती।
ऐसी कशिश उसमे की हर गुजारिश उस तक आ कर रुक जाए।
उसकी याद में जब तक न महके सांस ही नही आती।
बरसते अब्र की बूंदों में भी उसका अक्स दिखता है।
भीगते भीगते उसका ख्याल तो आता है बस वोही नही आती।
वो हवाओ सी चंचल है शायद, हवाओं में ही रहती है।
महसूस हो के गुजर जाती है पर नज़र में नही आती।
No comments:
Post a Comment