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तपते सूरज की क्या खूब तपिश है


तपते सूरज की क्या खूब तपिश है ,
मेरे इरादों से इसको रंजिश है ,
फिर भी मुझको चलना है ,
सफ़र दर सफर आगे बढना है ,
उठते कदम हैं , मुश्किल रास्ते हैं ,
कहीं ठोकरों ने मुझको गिराया है ,
कभी स्मृतियों ने मुझको रुलाया है ,
फिर भी मुझको चलना है ,
आगे ही आगे बढना है ,

मेरे अस्तित्ब की यह लड़ाई है ,
परिणाम मुझको पाना है ,
अभी मैं वर्तमान में जीता हूँ,
भबिष्य अपना मुझको बनाना है ,्
नेतृत्ब की गूढ परिभाषा में ,
मुझको प्रयत्न की नीव रखनी है ,
जरजर हुआ पड़ा शरीर मेरा ,
जख्मो से भरे पाँव हैं ,
फिर भी मुझको चलना है ,
आगे ही आगे बढना है ,

कठोर कहो या धैर्यवान मुझको ,
अनुशासन की एक सीमा रखनी है ,
भीतर बुझती आग को ,
शिष्टता की हवा देनी है ,
विपदा में धीरज की चाह ,
प्रसन्ता में स्मर्पण रखना है ,
कितने ही कुटिल बिचार बरसें ,
फिर भी मुझको चलना है ,
आगे ही आगे बढना है ,

न थके न हारे मेरा उत्साह कभी ,
किनारे की तलाश मुझको करनी है ,
क्षण भर को न टूटे संकल्प भी ,
मन में ऐसी दृढ़ता लानी है ,
पेड़ों की झुरमुट न दे छाँव गर ,
उजाड़ मरुस्थल बने राह गर ,
फिर भी मुझको चलना है ,
आगे ही आगे बढना है ,

मिलेगी मंजिल मुझको किसी दिन ,
बस कष्ट से आलिंगन करना है ,
हो कितना ही घनघोर अँधेरा ,
फिर भी मुझको चलना है ,
आगे ही आगे बढना है !!


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