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बूंद बूंद कर मिट रही होती है तू ऐ जिंदगी


बूंद बूंद कर मिट रही होती है तू ऐ जिंदगी ।
और मैं समझता हूँ मैं तुझको जी रहा हूँ ऐ जिंदगी ।

आज और कल करते करते बीत रही है जाने कब से ।
घडी भर में कितना गुजर जाती है तू ऐ जिंदगी।

सपनो की डोरी पर ख़्वाबों का तू एक फूल है।
खिलती है बस मुरझाने को ही तू ऐ जिंदगी।

हार जीत के पैमानों में मैं तुझको तोलते तोलते।
भूल जाता हूँ तुझको खोना है मुझको ऐ जिंदगी।

तू कब कहाँ किसकी हुई है जो अब मेरी होगी।
फिर भी बेपनाह मोहब्बत है तुझसे ऐ जिंदगी।

एक पहली सी लगती है मुझको तेरी कहानी।
क्यों तेरा प्रारम्भ है क्यों तेरा अंत है ऐ जिंदगी।



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