ये बद-गुमानी मुझको उलझाने लगी।
खुशबू उसकी मुझको रुलाने लगी।
मेरी दास्ताँ कुछ ऐसी बनी यारो।
बिछड़ी नींदें मेरी, रातें अब जगाने लगी।
कितने बहानो से मैं दिल को बहलाता रहा।
हर शाम मेरी आँखों को भिगोने लगी।
टूट के चाहा जिस शक्स को मैने।
यादें उसकी मुझको पल पल मिटाने लगी।
रफ़्ता-रफ़्ता वक़्त तो बीत रहा है मगर।
वेहशतों में एक आस फिर सताने लगी।
मुझे अब तन्हा चलना है जानता हूँ मैं।
अपनी बातों में मुझे ये उदासी नज़र आने लगी।
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