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मेघ


आ की थोडा सा तो बरस जा।
ऐ मेघ थोडा सा तो तरस खा।
धरती का कंठ सूखा पडा है।
खेत यहाँ उजड़ा पडा है।
बादलों का कोई जमघट नहीं।
तपिश पे किसी का काबू नही।
आ की थोडा सा तो बरस जा।
ऐ मेघ थोडा सा तो तरस खा।

पशु पक्षी तुझको ताक रहे।
एक उम्मीद से निहार रहे।
कतरा कतरा अब सूखा है।
मेघ तू क्यों इतना रूठा है।
ना मोर अब नृत्य करता है।
ना ही कोयल गीत गाती है।
आ की थोडा सा तो बरस जा।
ऐ मेघ थोडा सा तो तरस खा।

तू है तो जीबन में उमग है।
तेरे बिना सब मिथ्या है भ्रम है।
हरी हरयाली तुझ बिन कहाँ।
रोनक मिटटी में तुझ बिन कहाँ।
न कोई नई कोंपल फूट रही।
न ही गुलशन में बहार रही।
आ की थोडा सा तो बरस जा।
ऐ मेघ थोडा सा तो तरस खा।

प्यास ऐसी है की मिटती नही।
पानी बिना यह हटती नही।
सब तरफ हाहाकार मचा है।
मनुष्य यहाँ तड़प रहा है।
ब्यथा यह सही नही जाती।
जिंदगी ऐसे तो जी नही जाती।
आ की थोडा सा तो बरस जा।
ऐ मेघ थोडा सा तो तरस खा।

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