महफिलों में सजदे जो तुम्हारी निगाहों के हुए।
ना पूछिये किस कदर सितम मुझे पे हुए।
कहने को तो शायद मेरी ही मंजिल थी तुम ।
मगर बदली तुम्हारी अदाओं ने फासले ओर बड़ा दिए।
गैरों की तारीफ-ए-जिक्र पर मुस्कुराए तुम।
मेरी हर बात पर शिकवे तुमने कई हज़ार किए।
मुबारक तुम्हें तुम्हारी आबाद दुनियाँ की तमाम खुशियाँ ।
मुझे तो मेरे गम-ए-हिज्राँ ने आसरे कई दिए।
वो सहारा वो तसवुर अपना मोड़ कर ले जाओ।
ले जाओ वो हर ख्वाब-ओ-ख्वाहिश जो तुम दे कर गए।
अब यह बर्बाद आशियाँ मेरा बर्बाद ही रहने दो।
जलने दो उन जख्मो को जो तुम मुझे दे कर गए।
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