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जो यकीं था मुझको


जो यकीं था मुझको मेरे होने का ,
वो भरम तेरे अंजुमन में आ के टूट गया ,

अजीब सा उदास सन्नाटा पसरा था,
तेरा खालिस फरेब आशियाँ मेरा उड़ा ले गया,

जुस्तजूं तेरी थी जरूरत मेरी,
मरहम की चाह में जख्म कई झेल गया,

बेतासीर रहा मेरा ऐतबार तुझ पर,
फ़लक का ख़्वाब तिश्नगी दे गया !!

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