तेरी इनायत ऐ-साकी आज मुझ पर इतनी सी हो जाए,
मैं जाम लब पर लूँ, और जान निकल जाए मेरी,
यूँ तो तेरे मैखाने में है, मेरे दर्द की दवा,
पर आज मैं उस दर्द में जी लूँ , शायद कुछ कदर हो जाए मेरी,
उसकी निगाहों को आज मैं जाम में भर के पी लूँ,
कुछ देर को ही सही जिंदगी हो जाए मेरी,
एक मुददत से तलबगार हूँ मैं उसकी निगाहों का,
आज की शाम इतनी सी मेहरबानी हो जाए तेरी,
मैं जानता हूँ ऐ- साकी मैं मुजरिम हूँ तेरे इस मैखाने का,
आज की इस हसीन शाम में यही सजा हो जाए मेरी,
तस्सवुर से तस्बीर बन जाऊं आज मैं,
इतनी हसीन हो जाए आज की शाम मेरी !!
No comments:
Post a Comment