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ऐ दोस्त तेरी आरजू

 

ऐ दोस्त तेरी आरजू ए इत्तिहाद में
क्यों रखता ।
गर होश न रखता तो इताब भी क्यों
रखता ।

इद्राक तूने जो इनकार किया ।
गर इतराज ही न रखता तो 
इतिबार भी क्यों रखता ।

इन्तिखाव तेरा था इनाम जो मुझको
मिला ।
गर इब्तिसाम ही न रखी तो 
इनाद भी क्यों रखता ।

इब्तिला भी मेरी थी इबादत भी 
मेरी थी ।
गर ईमान ही न रखता तो
इल्लत भी क्यों रखता ।

इश्तियाक जो मेरे हिजर में उठी थी
इश्फ़ाक की तरहा ।
गर इश्रत ही न रखी तो इश्राक
भी क्यों रखता ।


Pritam Sharma


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