कौन तुझको मेरी तरहा चाहेगा,
अकेला तू कैसे जी पायेगा,
धोखा है यह जो आंखें देखती हैं,
आज है जो कल न रह पायेगा,
चलते चलते जल जाएँगे पाऊं छालों से,
मगर कोई रहनुमा न मिल पायेगा,
मेरी दास्ताँ-ए-दर्द तो मिट जाएगी,
पर मेरी यादों को ना तू मिटा पायेगा,
दामन छुड़ा लेंगी जब मेरी साँसे तुझसे,
हर आहट पर घबराहट को ना रोक पाएगा,
शाम जब ढलेगी तो उमीदें भी ढल जाएँगी,
खाली-खाली घर में तू खालीपन ही पायेगा,
रूह मैं अपनी तुम्हें मेरे ही निशान नज़र आयेंगे,
मेरा नाता तू अपने दर्द-ए-आशियाँ से पायेगा,
एक दौर आएगा जब तू चाहत को तरसेगा,
टूटेगा जब सबर तू दिल को न समझा पायेगा,
यह शहर बुतों का है जाना,
चिल्लाते -चिल्लाते थक जाओगे पर कोई
सुन ना पायेगा,
उम्र के कई पडाव बीत जायेंगे मुझको भूलाते भुलाते,
जला कर मेरी तस्वीर भी मेरा बजूद खाक न कर
पायेगा,
सुनेगा जब तू कहीं मोहब्बत के किस्से,
बहते अश्कों को ना रोक पायेगा,
मैं गैर हूँ लेकिन फिर भी, बैचेन तो कर जाऊँगा,
जब अपनों के बीच भी तू मुस्कुरा न पायेगा !!
No comments:
Post a Comment