यह और बात है कि मैं तेरे जैसी सोच नही रखता।
मैं अपने पास कोई ख्वाब कोई इल्ज़ाम नही रखता।
तुम कहते हो जाना कि मैं एक बे दिल शक़्स हूँ।
हाँ सही है मैं हिज़्र में आंसुओ से दोस्ती नही रखता।
चलो गर तुम्हें दिखती हैं मुझ मैं लाख बुराइयां तो सही।
मगर यह भी तो सच है कि मैं जुदाई की चाह भी नही रखता।
साथ आने का फैसला भी तुम्हारा था और दूर जाने का भी।
मैं तो किसी और के फैसलों में कोई दखल नही रखता।
तुम जिस राह मुड़ने की अब बात करते हो वो अब रही ही नही।
जाना पतझड़ में बिछड़े गए पत्तों की चाहत मैं नही रखता।
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