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संभल के तुम हर बात


संभल के तुम हर बात मुझसे कहना।
ए ज़िद्द तुम अपनी हद में सदा रहना।

मुझे मंजूर है तेरी हर नादान शरारत।
तू मेरी खामोशियों से मगर वाकिफ रहना।

यह राहें हर उस मंज़र से गुजरेंगी।
जहां दर्द के सन्नाटे ही बिखरे होंगे।
तुम हर दर्द से कुछ यूँ अपनी चाहत रखना।
जहाँ से भी मैं गुजरूं एक शफाकत रखना।


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