तेरे ही मैखाने में गुजर जाती है हर रात साकी।
कुछ इस कदर मेरे घर में तन्हाई पलती है साकी।
मुड के फिर ना देखूं मैं उन दर-ओ-दीवारों को।
जहां नही मिलता मुझको चैन-ओ-सुकूँ साकी।
हर शाम-ओ-सहर तेरे दर पे गुजार दूँ।
भर के पैमाने जो तू मुझको पिलाएगी साकी।
होश की बात यहाँ कौन करता है साकी।
मुझको दे ऐसी बेहोशी की कोई,
ख्वाब-ओ-आशियाँ न रहे साकी।
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