भुला के इक़रार-ए-वफ़ा जाने बाली।
फ़क़्त मेरी तरह अश्क़ बहाती होगी।
हर शाम मेरी ही ख्याली में।
मेरी तस्वीर से आँख मिलाती होगी।
चिराग तो हर रात बुझा देती होगी।
पर इंतज़ार आँखों में बाकी रखती होगी।
कुछ पुराने ख़त कुछ पुराने ख़्वाब।
अब भी अपनी अलमारी में सज़ा कर रखती होगी।
मेरे दर्द-ए-सैलाब पर हँसने बाली।
खुद अपने लहजे से ख़ौफ़ खाती होगी।
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