बेहद ख़राब हैं हालात कि कैसे जिएँ हम।
बंजर हुआ है आसमान कि कैसे जिएँ हम।
मेघ भी सलीके से है दूर जा रहा।
धरती हुई है उदास कि कैसे जिएँ हम।
कहीं कोई बर्षा नहीं, मेघ का कोई चर्चा नहीं।
सूख रहे हैं नदी-नाले कि कैसे जिएँ हम।
गर्मी से हुआ जा रहा है अब तो हाल बुरा।
कैसे इसको सेहें बोलो कि कैसे जिएँ हम।
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