पिंजरा पंछी दर्द बना ,
भीतर घुट घुट जाये ,
कभी ब्योम की ऊंचाईयां लाँगता ,
आज पिंजरे में सिमटता जाये ,
भूल गया उड़ाने अपनी ,
पिंजरे में पंख ना फरफराए ,
बिन अपराध का कैदी पंछी ,
अब कैसे मुक्ति पाये ,
भीतर घुट घुट जाये ,
देख के अपनी बेबसी ,
यातना ही सेहता जाये ,
बना पिंजरा घर पंछी ,
अब उड़ केसो पाये ,
लोहे की सलाखें हैं ,
पंछी काहे सर टकराए ,
पिंजरा पंछी दर्द बना ,
भीतर घुट घुट जाये ,
खाना पानी सब मिलता ,
फिर भी कुछ ना भाए ,
याद आती है आज़ादी ,
पंछी पिंजरा टूट ना पाए ,
दूर तलक नजर पड़ी ,
मुडेरों पर साथी पाए ,
भीग गयी आँखे पंछी ,
मन मन सिसकता जाये ,
पिंजरा पंछी दर्द बना ,
भीतर घुट घुट जाये ,
आ गया सियाद की जद में ,
पंछी अब काहे शोर मचाये ,
आघात हुआ कुछ ऐसा ,
परछाई भी थरथराये ,
कतर ना पाए सलाखें पंछी ,
दुस्वप्न चीख बन जाये ,
पिंजरा पंछी दर्द बना,
भीतर घुट घुट जाये ,
कोई फ़रिश्ता गर आये ,
तो पंछी मुक्ति पाए ,
कोई तोड़े सलाखों को ,
बंद पंछी उड़ जाए ,
रहे सियाद खुद पिंजरे में ,
तब पंछी दर्द समझ आये ,
पिंजरा पंछी दर्द बना ,
भीतर घुट घुट जाये !!
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