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Unplugged Shayaries Poems Gazals Kavitayain
जाने कौन थी वो
सुबह
की
पहली
किरण
को
अपने
चहरे
पर
महसूस
करती
हुई
बाहें
खोले
उनका
स्वागत
करती
थी
,
बहती
हवाओं
के
साथ
अपनी
चंचलता
को
लिए
अपने
आँचल
को
उड़ाया
करती
थी
,
जब
भी
घन
घोर
घटायें
आसमान
मैं
छाया
करती
थी
,
तो
बारिश
की
पहली
बूंद
के
स्वागत
के
लिए
अपने
चहरे
को
आसमान
की
तरफ
किये
हुए
खुद
को
भिगोया
करती
थी
,
जब
मोर
बागों
मैं
नृत्य
करता
था
और
कोयल
अपने
मधुर
कंठ
से
मधुर
स्वर
में
गाया
करती
थी
,
तो
वह
प्रकृति
के
इस
अदभुत
दृश्य
को
देख
उनकी
तरफ
खिंची
चली
जाया
करती
थी
,
जब
हर
कोई
जिंदगी
की
भाग
दौड़
मैं
ब्यस्त
हुआ
करता
था
,
तो
वह
समुंदर
की
लहरों
की
तरह
बेवाक
बह
जाया
करती
थी
,
हर
शाम
वो
समुंदर
के
किनारे
अपने
पेरों
से
टकराती
हुई
लहरों
के
साथ
डूबते
हुए
सूरज
की
सुन्दरता
,
उसकी
चरों
तरफ
बिखरी
हुई
लालिमा
को
निहारा
करती
थी
,
जब
शाम
ढल
जाती
थी
,
और
रात
के
आगोश
मैं
जब
चाँद
की
फैली
हुई
चांदनी
उजियारा
फैलाती
थी
,
तो
वह
अपने
घर
के
पीछे
एक
छोटे
से
तालाब
के
पास
कुछ
देर
बैठ
जाया
करती
थी
,
वहीँ
पर
कभी
कभी
वो
चांदनी
में
खुद
के
अक्स
को
पानी
मैं
देख
शरमा
जाया
करती
थी
,
धीरे
धीरे
बहती
हवा
के
झोंके
जब
उसके
चहरे
को
छू
जाया
करते
थे
तो
उसकी
वो
खुबसुरत
आँखें
रात
के
सुंदर
सपनो
में
खो
जाने
को
बेचैन
हो
जाया
करती
थी
,
उसकी
वो
धीमे
धीमे
से
बंद
होती
वो
खुबसूरत
आँखें
,
उसे
नींद
के
आगोश
में
,
सपनो
की
एक
खुबसूरत
दुनियाँ
मैं
ले
जाया
करती
थी
,
Pritam Sharma
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