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खामोश आंखें
"वो आंखें जो कहती तो बहुत कुछ थी,
पर एक ख़ामोशी को अपने साथ लिए रहती थी,
वो आंखें जिन्हें दुनियाँ तो देखा करती थी,
पर खुद को वो ना देख पाती थी,
मुस्कुराते हुए चहरे का जो दर्द बयाँ कर
दिया करती थी,
क्या मज़बूरी उन आाँखों की थी,
रोना तो वो चाहती थी,
फिर भी रो नही पाती थी,
अपने सूखे आंसुओं में उदासी भरा करती थी,
शायद कोई तो कहानी उन आाँखों में थी,
वही कहानी उन आाँखों की जिंदगानी थी,
नदी की गहराइयों में उतर जाए ऐसी दीवानगी थी,
कौन जाने वो आाँखे किसका इंतजार करती थी,
इंतज़ार के लम्हों में किसकी तस्वीर बनाया करती थी,
उस तस्वीर को दिल में बसा लिया करती थी,
वो आंखें जो कहती तो बहुत कुछ थी,
पर एक ख़ामोशी को अपने साथ लिए रहती थी !!
Pritam Sharma
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