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ठेहर की शाम अभी थोड़ी बाकी है


ठेहर की शाम अभी थोड़ी बाकी है।
दो घडी की मुलाक़ात अभी बाकी है।

यह पल बीत गया तो क्या खबर फिर आएगा।
कुछ निगाह-ए-भरम पालना अभी बाकी है।

यह फितूर है तेरा या मुझ पर खुमार सा है।
ऐ सनम यह उलझा तमाशा देखना अभी बाकी है।

हैरान ना हो मेरे जज्बात-ए-मंज़र पर ।
तेरे रहने तक ही मेरी आँखों में जिंदगी बाकी है।

फिर तो एक लम्बी सियाह रात है मेरे सामने।
ठहर की सुरख लाल आफताब में कुछ रंग अभी बाकी है।

कुछ खामोश बातों का सिलसिला अभी चलने दे।
मिटती हुई उमीदों में जान थोड़ी अभी बाकी है।


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